बुद्ध धर्म के दस शील/Ten Wisdom of Buddha Religion
बुद्ध धर्म की स्थापना महात्मा बुद्ध के द्वारा 5 वी शताब्दी ई. पू. में की गई थी। भारत में सर्वप्रथम इसके आरम्भ के साथ दूसरे देशों में भी इसका काफी प्रचार हुआ तथा बौद्ध अनुयाइयों की संख्या में काफी वृद्धि हुई।
इसका सर्वप्रथम कारण बना इस धर्म का साधारण व आडम्बर ना होना। इसमें धर्म के बताये मार्ग पर चलना और जीवन को साधारण तौर पर व्यतीत करने पर ज़ोर दिया गया। ध्यान और मौन रहते हुए ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग बताया गया।
बुद्ध ने अपने जीवन में कुछ घटनाओं को देखा जिसके बाद उनका ह्रदय परिवर्तन हुआ तथा सांसारिक मोहमाया से उनका मन विरक्त हो गया। जैसे :
एक बूढ़ा आदमी
एक अर्थी
एक बीमार व्यक्ति, तथा
एक वृक्ष के नीचे ध्यानमग्न साधु
इन सभी को देखने के बाद, बुद्ध ने विचार किया कि जीवन नश्वर है, तथा ज्ञान और ईश्वर की प्राप्ति के लिए उन्होंने गृहत्याग किया और मोक्ष की प्राप्ति की।
बौद्ध धर्म की शिक्षा को 10 शील में बताया गया है ,जिन्हें आज आप पढ़ेंगे।/Ten Wisdom of Buddha Religion
अहिंसा – मन ,कर्म और वचन से अहिंसा करना।
सत्य – सर्वदा सत्य बोलना।
अस्तेय – किसी भी प्रकार की चोरी नहीं करना।
व्यभिचार न करना – मन , कर्म और वचन किसी भी प्रकार से गंदे विचारों से बचना।
मद्य सेवन न करना – किसी भी प्रकार के मादक पदार्थो का सेवन नहीं करना।
असमय भोजन न करना – किसी निश्चित समय पर ही तथा सादा भोजन करना, इसके अलावा किसी अन्य समय न खाना।
सुखप्रद बिस्तर पर न सोना – गद्देदार, अत्यंत आरामदायक बिस्तर पर नहीं सोना।
अपरिग्रह – धन संचय से बचना , केवल आवश्यक वस्तुओं को ही अपने पास रखना।
संगीत व नृत्य से दूर रहना – गीत – संगीत नृत्य आदि के कार्यक्रमों में शामिल नहीं होना।
स्त्रियों के संसर्ग से बचना – ब्रम्ह्चर्य का पालन करना। मन, कर्म और वचन तीनों में कभी किसी भी स्त्री का विचार नहीं लाना।